महामारी....

पशु महामारी या रिंडरपेस्ट (Rinderpest)

पशुओं को लगने वाला एक विषाणुजनित संक्रामक रोग था जो अब विश्व से समाप्त हो चुका है। यह भैंस एवं कुछ अन्य पशुओं को लगता था। इस रोग से ग्रसित पशु को ज्वरअतिसार (पोंकनी या डायरिया), मुंह से लार टपकना आदि लक्षण देखने को मिलते थे।

संक्रामक रोग संसर्ग या छूआ – छूत से एक मवेशी से अनेक मवेशी से अनेक मवेशियों में फ़ैल जाते हैं। 

पाशु पालक को इस बात का अनुभव है कि ये छूतही बीमारियाँ आमतौर पर महामारी का रूप ले लेती है। 

संक्रामक रोग प्राय: विषाणुओं द्वारा फैलाये जाते हैं, लेकिन अलग – अलग रोग में इनके प्रसार के रास्ते अलग – अलग होते हैं। 

रोकथाम  –

  1. रोग की जानकारी सभी पाशु पालक को दे तथा पाशु अधिकारी को जानकारी दे। 
  2. पशु को quarantine करे। 
  3. सार्वजनिक तालाब या आहार में मवेशियों को पानी पिलाना बंद कर दिया जाए।
  4. सार्वजनिक चारागाह में पशुओं को भेजना तुरंत बंद कर देना चाहिए।
  5. इस रोग के आक्रांत पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  6. संक्रामत मृत पशु को जला देना चाहिए या 5-6 फुट गड्ढा खोद कर चूना के साथ गाड़ (विधिपूर्वक) देना चाहिए।
  7. जिस स्थान पर बीमार पशु रखा गया हो या मरा हो उस जगह sanitizer का use करे। 
  8. खाल की  खरीद – बिक्री बंद रखनी चाहिए।

यह रोग भी एक विषाणु से पैदा होने वाला छूतदार रोग है जोकि जुगाली करने वाले लगभग सभी पशुओं को होता है। इसमें पशु को तीव्र दस्त अथवा पेचिस लग जाते हैं। यह रोग स्वस्थ पशु को रोगी पशु के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इसके अतिरिे वर्तनों तथा देखभाल करने वाले व्यिे द्वारा भी यह बीमारी फैल सकती है। इसमें पशु को तेज बुखार होजाता है तथा पशु बेचैन होजाता है। दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है और पशु की आंखें सुर्ख लाल होजाती हैं। 2-3 दिन के बाद पशु के मुंह में होंठ, मसूड़े व जीभ के नीचे दाने निकल आते हैं जो बाद में घाव का रूप ले लेते हैं। पशु के मुंह से लार निकलने लगती हैतथा उसे पतले व बदबूदार दस्त लग जाते हैंजिनमें खून भी आने लगता है। इसमें पशु बहुत कमजोर होजाता है तथा उसमें पानी की कमी होजाती है। इस बीमारी में पशु की 3-9 दिनों में मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी के प्रकोप से विश्व भर में लाखों की संख्या में पशु मरते थे लेकिन अब विश्व स्तर पर इस रोग के उन्मूलन की योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा लागू की गयी रिन्डरपेस्ट इरेडीकेशन परियोजना के तहत लगातार शत प्रतिशत रोग निरोधक टीकों के प्रयोग से अब यह बीमारी प्रदेश तथा देश में लगभग समाप्त होचुकी है।


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