यह रोग गाय, सुुुअर तथा भैंस को लगता है। इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त 'घूरखा', 'घोंटुआ', 'अषढ़िया', 'डकहा' आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से 80% पशु मृत्यु का शिकार हो जाते है। यह बारीश के समय अधीक viral होता है। अति तीव्र गति से फैलता है।
रोग होने का कारण-
- पशु के दुषीत चारा खाने के कारण।
पशु के एक दुसरे को चाटने से संक्रमण फैलता है।
- पशु के दुषीत पानी पीने के कारण।
मौसमी बदलाव।
लक्षण-
-मुंह से लार आना।
गर्दन में सूजन।
सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है।
पशु को अचानक तेज बुखार हो जाता है एवं पशु कांपने लगता है।
पशु की आंखें लाल हो जाती हैं।
उपाय-
- पशुओं के बांधे जाने वाले स्थान/बैठने के स्थान व दूध दुहने के स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- साफ चारा और पानी पिलाऐ।
- अपने पशुओं को प्रति वर्ष वर्षा ऋतु से पूर्व इस रोग का टीका पशुओं को अवश्य लगवा लेना चाहिए। बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
- जिस स्थान पर पशु मरा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये।
रोग से नुकसान-
- सुुुुुुजन आनेेेसे पशुुुका चारा पानी खाना छोड देेना।
कमजोर पना।
पशु को सांस लेने मे तकलीफ होती हे।
पशु की मुत्यु होना आम है।
औषधी-
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